अजब गजब!! क्या एक भी निर्वाचित विधायक मुख्यमंत्री बनने लायक नहीं?

उत्तराखंड की राजनीति को ना बनाएं प्रयोगशाला का केंद्र, निर्वाचित विधायकों में से ही नेता चुना जाना लोकतंत्र का सम्मान, अपने नेताओं के लिए सीट छोड़ना मतदाताओं के वोट का अपमान

Dehradun: क्या उत्तराखंड राजनीतिक प्रयोगशाला है या फिर यह राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए तिकड़म बाजी का प्रदेश है? भारतीय जनता पार्टी में फिर वही पुराना खेल शुरू हो गया है और वह है सीएम बनने की अति महत्वकांक्षी चाहत। खेल तो यह है की सीएम बनने की चाह रखने वाले खुद अपने मुंह से कुछ नहीं बोलते, लेकिन उनके खास लोग हवा बनाना शुरु कर देते हैं। यह बेहद आश्चर्य की बात है कि अभी पूरी तरह से परिणाम घोषित भी नहीं हुए हैं कि मुख्यमंत्री बनने के लिए हारे हुए प्रत्याशियों एवं ऐसे नेताओं के नाम भी सामने आने लगे हैं जो चुनाव लड़े ही नहीं।

मतदाताओं के निर्णय के साथ खिलवाड़ क्यों?
कुछ विधायकों ने अपने आकाओं को मुख्यमंत्री बनाने का सपना देखते हुए जनता द्वारा उन्हें दिए गए वोट को दरकिनार करते हुए सीट छोड़ने का ऑफर किया है। आकाओं को मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपनी सीट छोड़ने की बात करना सीधे तौर पर उन मतदाताओं का अपमान करना है जिन्होंने उन पर विश्वास किया और एकतरफा जीत दिलाने में पंक्तियों में लगे रहे। मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा क्या इस प्रकार से सर चढ़ चुकी है की हार या चुनाव में भागीदारी ना करने के बावजूद प्रदेश का मुखिया बनना ही बनना है।

जो जनता में अस्वीकार या चुनाव भागीदारी से रहा बाहर उसे मौका क्यों?
प्रदेश के अंदर हवा में उड़ने लगी है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? सवाल सही है, लेकिन इसका जवाब यदि निर्वाचित विधायकों में से ही तलाशा जाए तो यही लोकतंत्र को सही सम्मान देना होगा। अब जो जीता ही नहीं या जिसे जनता ने अस्वीकार कर दिया क्या उसे जबरन जनता पर थोपा जाना चाहिए? या फिर ऐसे नेता जो अपनी हार के डर से या फिर दूसरे कारणों से चुनाव ही नहीं लड़े क्या उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में माना जाना चाहिए? यह वाकई बहुत दयनीय और विकट स्थिति है।

एक्सपेरिमेंट ही करना है तो नए चेहरों पर क्यों नहीं?
जब एक्सपेरिमेंट ही करने हैं तो क्या जरूरी है कि पुराने चेहरों पर दाऊ लगाया जाए? योग्य एवं ऊर्जावान जनप्रतिनिधि भी इन चुनावों में जीत कर आए हैं और सत्ता के शीर्ष पद पर हासिल होने की योग्यता रखते हैं। क्या निर्वाचित विधायकों में से एक भी पार्टी हाईकमान की नजरों में इस योग्य नहीं है कि उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया जा सके? मुख्यमंत्री बनने के लिए खींचातानी और अवसरवादीता की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए। लोकतंत्र की जीत की बात करते हो तो लोकतंत्र के सिद्धांतों का पालन भी करना चाहिए।

जनता द्वारा चुने गए विधायक को ही चुना जाए विधायक दल का नेता
जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में निर्वाचित विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत का चुनाव किया था वह एक सकारात्मक कदम था जबकि उसके बाद खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी एक ऊर्जावान एवं कर्मठ मुख्यमंत्री साबित हुए लेकिन वे चुनाव हार गए तो अब तमाम नाम मुख्यमंत्री बनने के लिए सोशल मीडिया पर कुलांचे भरने लगे हैं। हालांकि हाईकमान की ओर से अभी किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर व्यक्त नहीं की गई है, लेकिन हाईकमान को इस बात को जरूर समझना होगा कि उत्तराखंड की जनता ने जिन विधायकों को चुनकर सदन में भेजा है, उन्ही में से विधायक दल का नेता चुन कर उत्तराखंड का मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाना चाहिए।