सरकार बनाने को हर तिकड़म देखने को मिलेगी, आदर्श और नैतिकता हो सकती है दरकिनार
DEhradun: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस को अपने जिताऊ प्रत्याशियों के बिकने का डर सताने लगा है। इसी को देखते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल देहरादून पहुंच चुके हैं जो सरकार बनाने के हर हथकंडे पर नजर रखेंगे। वही जैसे की चर्चा थी कांग्रेस अपने विधायकों को भाजपा के शिकंजे से बचाने के लिए चुनाव परिणामों के बाद एयरलिफ्ट कराने की पूरी रणनीति तैयार कर चुकी है।
असल में यह डर केवल कांग्रेस का नहीं है बल्कि भाजपा को भी अंदर खाने यह डर सता रहा है कि जिस प्रकार से पार्टी के अंदर भितरघात की परंपरा ने जन्म लिया है उसके बाद उसके अपने विधायक भी मौका देख कर पलटी मार सकते हैं। भाजपा का एक खास वर्ग ना केवल सरकार बनाने के लिए तिकड़म तैयार कर रहा है तो उन्हीं अपने विधायकों पर भी पूरी तरह नजर रखने का काम करेगा।
प्रत्याशियों की घोषणा से पूर्व जिस प्रकार कांग्रेस में दल बदलू का खेल नजर आया था उसके बाद यह नजरअंदाज करना मूर्खता होगी की जीते हुए विधायक पाला नहीं बदलेंगे। भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही खतरे की जद में हैं और सरकार बनाने के लिए विधायकों का बिकना कोई नई बात नहीं है।
कॉन्ग्रेस इसलिए भी अधिक देरी हुई है क्योंकि भाजपा का पुराना रिकॉर्ड सरकार बनाने के लिए नैतिकता की बलि देता आया है। यदि बहुमत प्राप्त करने के लिए भाजपा को कुछ विधायक जुटाने भी पढ़े तो यह मुश्किल काम नहीं है हालांकि कांग्रेस के विधायक तोड़ने से पूर्व भाजपा दूसरे दलों के विधायकों को रिझाने का काम करेगी जो अपने दम पर चुनाव जीतकर विधायक बनेंगे।
कांग्रेस ने भाजपा की तिकड़म और प्रपंच से बचने के लिए भूपेश बघेल को उत्तराखंड बुलाया ह, इससे पहले कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, सांसद दीपेंद्र हुड्डा, स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अविनाश पांडे सहित अन्य रणनीतिकार भी देहरादून पहुंच चुके हैं। जीतने वाले हर कैंडिडेट से पार्टी के नेता लगातार टच में हैं, ताकि BJP की किसी भी विधायक पर डोरे डालने की गतिविधि को समय रहते फेल किया जा सके.
बहरहाल उत्तराखंड में सरकार बनाने के लिए दोनों ही दल अपना सर्वस्व होम करने को तैयार हैं। बहुमत ना मिला तो राजनीति के स्तर का हर रूप देखने को उत्तराखंड में मिल सकता है। फिर चाहे इसके लिए नैतिकता एवं आदर्शों को भी बलि पर क्यों ना चढ़ाना पड़े।